हिमालय के 90% भाग को 3 डिग्री सेल्सियस तापमान की वृद्धि के कारण साल भर में सूखा सामना करना पड़ सकता है: अध्ययन

एक नए शोध में हिमालय क्षेत्र में सूखे के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। अगर ग्लोबल वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ती है, तो हिमालय क्षेत्र के लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र में एक वर्ष तक सूखे का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही, ग्लोबल वार्मिंग के स्तर में वृद्धि के साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर मानव और प्राकृतिक प्रणालियों के लिए जलवायु परिवर्तन के जोखिम भी बढ़ जाते हैं।

3 डिग्री तापमान बढ़ने पर हिमालय के 90% हिस्से को साल भर सूखे का करना पड़ेगा सामना, अध्ययन में सामने आए तथ्य

एक नए शोध में हिमालय क्षेत्र में सूखे को लेकर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। शोध के अनुसार, यदि ग्लोबल वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाती है, तो हिमालय क्षेत्र के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से में एक वर्ष तक सूखा रहेगा। इस शोध के आधार पर पाया गया है कि पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों का पालन करके भारत में गर्मी के तनाव के बढ़ते मानव जोखिम से 80 प्रतिशत तक बचा जा सकता है, जबकि तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है।

यूके में ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय (यूईए) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली टीम ने इस अध्ययन में ग्लोबल वार्मिंग के स्तर बढ़ने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर मानव और प्राकृतिक प्रणालियों के लिए जलवायु परिवर्तन के जोखिमों की बढ़त का विश्लेषण किया है।

एक अध्ययन से प्रकट होता है कि ग्लोबल वार्मिंग के अतिरिक्त प्रति डिग्री तापमान बढ़ने पर भारत, ब्राजील, चीन, मिस्र, इथियोपिया, और घाना जैसे देशों में सूखा, बाढ़, फसलों की उत्पादन में कमी, और जैव विविधता और प्राकृतिक पूंजी के हानि में वृद्धि होती है।

अध्ययन में पाया गया कि भारत में 3-4 डिग्री ग्लोबल वार्मिंग पर परागण (पोलिनेशन) आधे से कम हो जाता है, जबकि 1.5 डिग्री पर यह आधे से अधिक कम हो जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से भारत जैसे देशों को जैव विविधता के लिए आश्रय के रूप में काम करने की अनुमति मिलती है, जबकि 3 डिग्री पर यह लाभ 6 प्रतिशत होता है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि 3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने के साथ कृषि भूमि के सूखे के जोखिम में बड़ी वृद्धि हुई है। प्रत्येक देश में, 30 साल की अवधि में, अधिकांश कृषि भूमि के लगभग 50 प्रतिशत समय गंभीर सूखे के प्रभाव में रहते हैं।

हालांकि, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से कृषि भूमि पर सूखे का जोखिम 21 प्रतिशत (भारत) और 61 प्रतिशत (इथियोपिया) कम हो जाएगा।

यह अध्ययन भारत जैसे देशों को वायुमंडल से कार्बन सोखने के प्रभाव से निपटने के लिए पारिस्थितिक तंत्र को उनकी प्राकृतिक स्थिति में बहाल करने के लिए प्रेरित करता है।

इसके अलावा, यह कार्य विकासशील देशों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों में, छोटे और बड़े दोनों देशों को शामिल करते हुए, यह अध्ययन सामाजिक-आर्थिक विकास के कई स्तरों को कवर करता है।

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